तुम मेरे बारे में छोटी छोटी बातें जानना चाहते हो ना ? तो ये रही एक। जब मेरा महीना चल रहा होता है, मैं अपने गुप्तांगों को दो दफ़ा धोती हूँ । इतने टाइम से ऐसा करती आ रही हूँ कि अब सोचने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती, आटोमाटिक कर देती हूँ । पहली मरतबा झाग का रंग गुलाबी होता है, थोड़ी बासी सी बू आती है ( हाँ, मैं उसे ज़रूर सूँघती हूँ, मैं तो हर चीज़ सूँघती हूँ, ये तो तुमको अब तक मालूम होना चाहिए )। फ़िलहाल, मैं फिर से साबुन मलती हूँ , इस बार झाग दूधिया दिखता है, मैं उसे धो डालती हूँ और बस, नहाने के बचे काम में लग जाती हूँ ।
और अब ( तुम्हारी क़िस्मत खुल गयी है ) एक बोनस बात भी सुन लो - हाल ही के कुछ महीनों से, उस पहले साबुन मलने और दूजे साबुन मलने के बीच, एक आदत की याद झाग के गुब्बरों पे सवार आयी। मैं आज साबुन मलने में लगी हुई थी कि वो पुरानी आदत पे मन गया, वो आदत जो ज़्यादा दिन नहीं रही थी ।
तो वो पहली धुलाई तो मैं वैसे ही करती थी, ख़ून के लौह को ऑक्सिजन का साथ मिलने पे जो गहरा भूरा रंग मिलता, उसको मैं अपनी जाँघों से साफ़ करती । फिर एक लम्बी साँस लेकर अपनी योनी से कुछ ताज़ा माल छूती, और बाहर निकालने पे मेरी ऊँगली टमाटर के सॉस जैसे लाल माल से ढकी हुई होती । मैं उसे अपने चहरे तक लाती और एक और साँस भरती । एकदम गहरी साँस। मेरा महीना के चलते, ये पहली गहरी साँस सबसे ज़्यादा असरदार होती है । समुन्दर की नमकीन हवा जैसे, बस नमक थोड़ा कम, जंक लगे लोहे सी, अब मैं कैसे बताऊँ …
हाँ, शायद अगर तुम वो ज़िंदगी जी रहे होते, जो मैं उन दिनों जी रही थी, तो शायद तुम्हें थोड़ा और समझ में आता। कल्पना करो कि तुम अपना सारा समय एक ऐसे फ़्लैट में बिता रहे हो जो एकदम बेरंग है और जिसकी कोई गंध ही नहीं । शायद इस हफ़्ते भर में, तुम्हें किसी दूसरे इंसान के साथ कुछ साठ सेकंड बात करने का मौक़ा मिले, और अगर मिले भी, तो तुम्हारा चहरा एक नहीं, बल्कि दो मास्क से ढका हो । ख़ुशबू के तौर पे बस धुले कपड़ों की स्मेल मिले, या फिर बोतल से निकाल के बनायी गयी रसदार खाने की बोरिंग सी गंध, तुम उसमें जब सब्ज़ी डालो तो सब्ज़ी की भी कोई ख़ुशबू ना हो । हाँ एक पुदीने का गुच्छा है जिसमें थोड़ी बहुत स्मेल है । तुम उस गुच्छे में अपना चहरा डालो तो केवल सैनीटाईज़र की बू आए, जो उसपे पिछली रात को छिड़का गया था । तो किसी भी बू से ख़ाली इस माहौल में, तुमको अपने बदन से निकल रहे महीने के ख़ून की बास का लुत्फ़ लेने का मन कर ही सकता है ।
मुझे ये सोच के मज़ा आता है, कि मैं इस ख़ुशी के लिए अपनी योनी में अपनी ऊँगली से गोता लगाती हूँ । पता है, इसके अलावा मैं ऐसी ख़ुशी को वहाँ ढूँढने नहीं जाती । हमेशा से ही, मेरे होंठ इस काम के लिए काफ़ी रहे हैं, तबसे, जबसे मेरा महीना चालू भी नहीं हुआ था । और मेरे महीने का आना तो इस ऊँगली के खेल से मिलने वाली ख़ुशी के आड़े आया करता था । अगर कभी मैंने महीने के दिनों में ये योनी में ऊँगली वाला सेक्सी खेल खेला भी, वो बस इसलिए कि तुम्हारा सेक्सी सपना आ गया या तुमसे हुई बातचीत का असर कुछ ऐसा रहा कि मेरा तन बदन झूमने लगा और मैं ये सुख पाने के लिए तड़प उठी, अपने को मना ही नहीं कर पायी । मैं ऐसे में अपने नीचे तौलिया बिछा लेती, फिर अपनी ख़ून से रंगी ऊँगली को ऊपर उठाते हुए , वाश बेसन पे भाग कर, अपने को अच्छे से धो लेती ।
पर अब मैं अपने आप को यहाँ, इस सफ़ेद टाईल वाले बाथरूम में पाती हूँ, जिनपे बसंत की हल्की धूप की तिरछी लकीरें चमक रही हैं । और मैं बार -बार, बार -बार, इस नशे के आख़री कश की तलाश कर रही हूँ, बस एक और दम , इस गहरे -गहरे लाल रंग की दी हुई, कभी ना ख़त्म होने वाली मस्ती के मज़े लेने के लिए … मैं उस मस्ती की सुध में दीवार के चिपक जाती हूँ, मेरी पीठ पीछे की ओर झुकती है, मेरे पेट में बसी सारी टेंशन और बोरियत की गाँठें खुल जाती हैं । हर क़ैद से रिहा मिलती है ।
ये ऐसा उन्माद है जिसपे मैं भरोसा कर सकती हूँ, और मैं इसकी गहराइयों में बहुत कुछ ढूँढ सकती हूँ । मैं अपने आप से कहती हूँ कि बस इस जादू भारी लहर पे सवार हो, इससे सवाल ना पूछो - पर मैं तो सवाल पूछूँगी ही, क्यूँकि मुझे ये सुख चाहिए, ऐसा सुख जिसे मैंने ख़ुद ही ढूँढ निकाला है ।जिसका मैंने बिना किसी तो बताए पीछा किया है । मुझे किसी ने नहीं कहा कि मुझे यूँ करना चाहिए, या कि मुझे ये पसंद आना चाहिए । मैं चाहती हूँ कि ये सुख मुझे मेरे बारे में कुछ समझाए, ये दिखाए कि शायद मेरे ही अंदर कोई ख़ास हुनर है, कुछ अच्छाई, तभी तो मुझे ये सुख ख़ुद ब ख़ुद मिल गया ।
चलो यहाँ अच्छाई की शायद कोई बात नहीं, पर ये तो कन्फ़र्म है कि इस सब मैं कोई मायूसी भी नहीं । ये चटक सा, थोड़ा तिगडम सा किंकी काम, मेरा निजी ख़ज़ाना है । मैं अपने बारे में जो अच्छा बुरा सोचती हूँ, ये उस सबसे परे है । कोई और शायद ये कहेगा कि इससे पता चलता है कि मैं जन्म देना चाहती हूँ, किसी बच्चे की परवरिश करना चाहती हूँ, पर मैं अपने आप को इतना जानती हूँ कि मुझे पता है कि ऐसा नहीं है । इसमें जान है, दम है, पर ये मेरी जान है, मेरा दम है, और किसी का नहीं । अगर उपमाओं में सोचना ही है तो मुझे फिर मुझे तो इसमें काली जैसी देवी दिखती है, दुनिया के ऊपर नाचती हुई ।
अब एक लम्बे अरसे के बाद, दुनिया की जान में फिर से जान आयी है, ख़ुशबू, छुवन, हमारे जीवन में लौटी हैं और मैं अपने मास्क को पीछे की जेब में डाल के घूम रही हूँ । मेरा महीना एक सनसनीख़ेज़ तजुरबे की जगह, फिर से हर महीने थोड़ा तंग करने वाली चीज़ बनने लगा है । अब मैं उसकी सुध नहीं लेती । उसकी जगह, तुम्हारे नमकीन बदन का लुत्फ़ लेती हूँ, जब तुम बेडमिनटन खेल के आते हो, या बोट नूडल खाते वक़्त, सुअर के ख़ून की महक (जो कि इस नूडल का छिपा हुआ राज़ है) लेती हूँ । अभी के लिए ये काफ़ी है, मैं अपने कंधों को टेक देती हूँ, और अपने सुख में मस्त होके, ठंडी टाईल वाली दीवार को भूल जाती हूँ । मैं अपनी इस ख़ुशबू को थोड़ी देर और सोकती हूँ, फिर दूसरी धुलाई चालू करती हूँ।